सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Rabindranath Tagore लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

New !!

मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

Vividh Vasnaye Hain Meri - विविध वासनाएँ हैं मेरी | रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता- Rabindranath Tagore Hindi Poem

  विविध वासनाएँ हैं मेरी -  Vividh Vasnaye Hain Meri |  Rabindranath Tagore Hindi Poem रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता Rabindranath Tagore Hindi Poem विविध वासनाएँ हैं मेरी प्रिय  प्राणों  से भी वंचित कर उनसे तुमने की है  रक्षा  मेरी; संचित कृपा  कठोर  तुम्हारी है मम जीवन में। अनचाहे  ही दान दिए हैं तुमने जो मुझको, आसमान, आलोक,  प्राण-तन-मन  इतने सारे, बना रहे हो मुझे योग्य उस  महादान  के ही, अति इच्छाओं के संकट से  त्राण  दिला करके। मैं तो कभी भूल जाता हूँ, पुनः कभी  चलता , लक्ष्य  तुम्हारे पथ का धारण करके  अन्तस्  में, निष्ठुर  ! तुम मेरे सम्मुख हो  हट  जाया करते। यह जो  दया  तुम्हारी है, वह जान रहा हूँ मैं; मुझे  फिराया  करते हो अपना लेने को ही। कर डालोगे इस जीवन को  मिलन-योग्य  अपने, रक्षा कर मेरी  अपूर्ण  इच्छा के संकट से।। - रबिन्द्रनाथ  टैगोर

पिंजरे की चिड़िया थी - रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता | Pingre Ki Chidiya Thi - Rabindranath Tagore Hindi Poem

Pingre Ki Chidiya Thi -  पिंजरे की चिड़िया थी... रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore  पिंजरे की चिड़िया थी सोने के पिंजरे में वन कि चिड़िया थी वन में एक दिन हुआ दोनों का सामना क्या था विधाता के मन में वन की चिड़िया कहे सुन पिंजरे की चिड़िया रे वन में उड़ें दोनों मिलकर पिंजरे की चिड़िया कहे वन की चिड़िया रे पिंजरे में रहना बड़ा सुखकर वन की चिड़िया कहे ना… मैं पिंजरे में क़ैद रहूँ क्योंकर पिंजरे की चिड़िया कहे हाय निकलूँ मैं कैसे पिंजरा तोड़कर वन की चिड़िया गाए पिंजरे के बाहर बैठे वन के मनोहर गीत पिंजरे की चिड़िया गाए रटाए हुए जितने दोहा और कविता के रीत वन की चिड़िया कहे पिंजरे की चिड़िया से गाओ तुम भी वनगीत पिंजरे की चिड़िया कहे सुन वन की चिड़िया रे कुछ दोहे तुम भी लो सीख वन की चिड़िया कहे ना …. तेरे सिखाए गीत मैं ना गाऊँ पिंजरे की चिड़िया कहे हाय! मैं कैसे वन-गीत गाऊँ वन की चिड़िया कहे नभ का रंग है नीला उड़ने में...

लगी हवा यों मन्द-मधुर इस - Inspirational Poems in Hindi by Rabindranath Tagore | रबिन्द्रनाथ टैगोर हिंदी कवितायेँ

लगी हवा यों  मन्द-मधुर  इस - Inspirational  Poems  in Hindi by  Rabindranath  Tagore रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore लगी हवा यों मन्द-मधुर इस नाव-पाल पर अमल-धवल है; नहीं कभी देखा है मैंने किसी नाव का चलना ऐसा। लाती है किस जलधि-पार से धन सुदूर का ऐसा, जिससे- बह जाने को मन होता है; फेंक डालने को करता जी तट पर सभी चाहना-पाना ! पीछे छरछर करता है जल, गुरु गम्भीर स्वर आता है; मुख पर अरुण किरण पड़ती है, छनकर छिन्न मेघ-छिद्रों से। कहो, कौन हो तुम ? कांडारी । किसके हास्य-रुदन का धन है ? सोच-सोचकर चिन्तित है मन, बाँधोगे किस स्वर में यन्त्र ? मन्त्र कौन-सा गाना होगा ?  - रबिन्द्रनाथ टैगोर रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore...

प्रेम, प्राण, गीत, गन्ध, आभा और पुलक में - Motivational Poems in Hindi by Rabindranath Tagore | रबिन्द्रनाथ टैगोर हिंदी कवितायेँ

प्रेम, प्राण, गीत, गन्ध, आभा और पुलक में  Motivational Poems in Hindi by Rabindranath Tagore रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore प्रेम, प्राण, गीत, गन्ध, आभा और पुलक में, आप्लावित कर अखिल गगन को, निखिल भुवन को, अमल अमृत झर रहा तुम्हारा अविरल है। दिशा-दिशा में आज टूटकर बन्धन सारा- मूर्तिमान हो रहा जाग आनंद विमल है; सुधा-सिक्त हो उठा आज यह जीवन है। शुभ्र चेतना मेरी सरसाती मंगल-रस, हुई कमल-सी विकसित है आनन्द-मग्न हो; अपना सारा मधु धरकर तब चरणों पर। जाग उठी नीरव आभा में हृदय-प्रान्त में, उचित उदार उषा की अरुणिम कान्ति रुचिर है, अलस नयन-आवरण दूर हो गया शीघ्र है।।  - रबिन्द्रनाथ  टैगोर रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore

विविध वासनाएँ हैं मेरी - Vividh Vasnaye Hain Meri | Rabindranath Tagore Hindi Poems | रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता

विविध वासनाएँ हैं मेरी -  Vividh Vasnaye Hain Meri रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore विविध वासनाएँ हैं मेरी प्रिय प्राणों से भी वंचित कर उनसे तुमने की है रक्षा मेरी; संचित कृपा कठोर तुम्हारी है मम जीवन में। अनचाहे ही दान दिए हैं तुमने जो मुझको, आसमान, आलोक, प्राण-तन-मन इतने सारे, बना रहे हो मुझे योग्य उस महादान के ही, अति इच्छाओं के संकट से त्राण दिला करके। मैं तो कभी भूल जाता हूँ, पुनः कभी चलता , लक्ष्य तुम्हारे पथ का धारण करके अन्तस् में, निष्ठुर ! तुम मेरे सम्मुख हो हट जाया करते। यह जो दया तुम्हारी है, वह जान रहा हूँ मैं; मुझे फिराया करते हो अपना लेने को ही। कर डालोगे इस जीवन को मिलन-योग्य अपने, रक्षा कर मेरी अपूर्ण इच्छा के संकट से।। - रबिन्द्रनाथ  टैगोर रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi P...

नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से - रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता | Rabindranath Tagore Hindi Poems

नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से, मुझे बचाओ, त्राण करो विपदा में निर्भीक रहूँ मैं, इतना, हे भगवान , करो। नहीं मांगता दुःख हटाओ व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ दुखों को मैं आप जीत लूँ ऐसी शक्ति प्रदान करो विपदा में निर्भीक रहूँ मैं, इतना, हे भगवान ,करो। कोई जब न मदद को आये मेरी हिम्मत टूट न जाये। जग जब धोखे पर धोखा दे और चोट पर चोट लगाये – अपने मन में हार न मानूं , ऐसा, नाथ, विधान करो। विपदा में निर्भीक रहूँ मैं, इतना, हे भगवान ,करो। नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी जीवन नैया पार करो पार उतर जाऊँ अपने बल इतना, हे करतार , करो। नहीं मांगता हाथ बटाओ मेरे सिर का बोझ घटाओ आप बोझ अपना संभाल लूँ ऐसा बल-संचार करो। विपदा में निर्भीक रहूँ मैं, इतना, हे भगवान,करो। सुख के दिन में शीश नवाकर तुमको आराधूँ, करूणाकर । औ’ विपत्ति के अन्धकार में, जगत हँसे जब मुझे रुलाकर – तुम पर करने लगूँ ...

Ansuni Karke Teri Baat - अनसुनी करके तेरी बात | रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता - Rabindranath Tagore Poems

अनसुनी करके तेरी बात - Ansuni Karke Teri Baat  रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी कवितायेँ Rabindranath Tagore Hindi Poems Hindi Poems By Rabindranath Tagore  अनसुनी करके तेरी बात न दे जो कोई तेरा साथ तो तुही कसकर अपनी कमर अकेला बढ़ चल आगे रे– अरे ओ पथिक अभागे रे । देखकर तुझे मिलन की बेर सभी जो लें अपने मुख फेर न दो बातें भी कोई क रे सभय हो तेरे आगे रे– अरे ओ पथिक अभागे रे । तो अकेला ही तू जी खोल सुरीले मन मुरली के बोल अकेला गा, अकेला सुन । अरे ओ पथिक अभागे रे अकेला ही चल आगे रे । जायँ जो तुझे अकेला छोड़ न देखें मुड़कर तेरी ओर बोझ ले अपना जब बढ़ चले गहन पथ में तू आगे रे– अरे ओ पथिक अभागे रे । - रबिन्द्रनाथ टैगोर रबिन्द्रनाथ टैगोर  की  हिंदी  कविता  रबिन्द्रनाथ टैगोर   हिंदी  कवितायेँ Rabindranath Tagore   Hindi  Poems Hindi Poems  By  Rabindranath  Tagore 

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

Arey Dwarpalo Kanhaiya Se Keh Do Lyrics | अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो लिरिक्स

Arey Dwarpalo Kanhaiya Se Keh Do Lyrics अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो लिरिक्स

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...