Vividh Vasnaye Hain Meri - विविध वासनाएँ हैं मेरी | रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता- Rabindranath Tagore Hindi Poem
विविध वासनाएँ हैं मेरी - Vividh Vasnaye Hain Meri | Rabindranath Tagore Hindi Poem रबिन्द्रनाथ टैगोर की हिंदी कविता Rabindranath Tagore Hindi Poem विविध वासनाएँ हैं मेरी प्रिय प्राणों से भी वंचित कर उनसे तुमने की है रक्षा मेरी; संचित कृपा कठोर तुम्हारी है मम जीवन में। अनचाहे ही दान दिए हैं तुमने जो मुझको, आसमान, आलोक, प्राण-तन-मन इतने सारे, बना रहे हो मुझे योग्य उस महादान के ही, अति इच्छाओं के संकट से त्राण दिला करके। मैं तो कभी भूल जाता हूँ, पुनः कभी चलता , लक्ष्य तुम्हारे पथ का धारण करके अन्तस् में, निष्ठुर ! तुम मेरे सम्मुख हो हट जाया करते। यह जो दया तुम्हारी है, वह जान रहा हूँ मैं; मुझे फिराया करते हो अपना लेने को ही। कर डालोगे इस जीवन को मिलन-योग्य अपने, रक्षा कर मेरी अपूर्ण इच्छा के संकट से।। - रबिन्द्रनाथ टैगोर